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10वी साठी ( practice now 2026).
1.होली
होली हमारे देश के मुख्य त्योहारों में से एक है। यह हँसी-खुशी और रंगों का त्योहार है। अमीर-गरीब सभी इस त्योहार को उत्साह से मनाते हैं। यह त्योहार फागुन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का रंगोंभरा त्योहार वसंत ऋतु की मस्ती में चार चाँद लगा देता है।
होली के बारे में भक्त प्रहलाद की कथा प्रचलित है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु भगवान को नहीं मानते थे। वे एक नास्तिक व्यक्ति थे। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान का भक्त था। यह बात हिरण्यकशिपु को पसंद नहीं थी। इसलिए उन्होंने प्रह्लाद को आग में जला देने का निश्चय किया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। भाई के आदेश पर होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर चिता में बैठ गई और आग लगा दी गई। लेकिन होलिका आग में भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। लोग यह देखकर दंग रह गए। आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति की विजय हुई। तभी से होलिकोत्सव का प्रारंभ हुआ।
कुछ लोग होली को रबी की फसल का त्योहार मानते हैं। उनका मानना है कि अच्छी फसल की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। होली के त्योहार की तैयारियाँ कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। बाजार रंगों एवं पिचकारियों से भर जाते हैं।
होली जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी की जाती हैं। पूर्णिमा को शाम के समय होली जलाई जाती है। सुहागन स्त्रियाँ नारियल, कुंकुम, चावल और नए अनाज से होली की पूजा करती हैं। बच्चे, बूढ़े, नवयुवक सभी उत्साह में आकर गाने, बजाने तथा नाचने लगते हैं।
होली के दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है। इस दिन खूब गुलाल उड़ते हैं। लोग एक-दूसरे पर रंग छिड़कते हैं। रंगों से कपड़े ही नहीं दिल भी रंगीन हो जाते हैं। लोग प्रेम से एक-दूसरे से गले मिलते हैं। होली के उत्सव में जाति-पाँति और धर्म का भेद-भाव मिट जाता है।
होली के साथ कुछ बुरी परंपराएँ भी जुड़ गई हैं। होली के अवसर पर कुछ लोग रंग के बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ डालते हैं। कुछ लोग विषैले रंगों का भी प्रयोग करते हैं। ये रंग आँखों एवं त्वचा को नुकसान पहुँचाते हैं। हमें इन बुराइयों से बचना चाहिए।
वास्तव में होली वसंत ऋतु का रंगबिरंगा त्योहार है। यह हमारे जीवन में उल्लास और प्रेम का रंग भर देता है। सामाजिक एकता, उल्लास और उमंग की दृष्टि से होली अपने आप में एक अनूठा त्योहार है।
2.रक्षाबंधन
रक्षाबंधन हमारे देश का अति प्रिय और पवित्र त्योहार है। यह हर साल सावन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक हैं।
इस त्योहार के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार इसी दिन देवराज इंद्र की पत्नी शची ने सभी देवताओं को रक्षा-सूत्र बाँधा था। इस एकता के बल पर देवताओं ने असुरों पर विजय पाई थी। एक अन्य कथा के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा के दिन ऋषि-मुनि अपनी साधना की पूर्णाहुति करते थे। इस अवसर पर वे राजाओं की कलाई में राखी बाँधकर उन्हें आशीर्वाद देते थे। इसी दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि का घमंड चूर-चूर कर दिया था। इसलिए गुजरात में रक्षाबंधन के पर्व को 'बलेव' कहते हैं। महाराष्ट्र में यह पर्व' नारियल पूर्णिमा' के रूप में मनाया जाता है।
रक्षाबंधन के अवसर पर भाई-बहन का स्नेह व्यक्त होता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है। वह अपने भाई के मंगल की कामना करती है। भाई प्यार से बहन को कुछ उपहार देता है। रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन बचपन की यादों में खो जाते हैं। इस दिन घर-घर में खुशी का वातावरण होता है।
आज समय बदल गया है। राखियों में भी व्यावसायिकता आ गई है। धन कमाने के लिए एक से बढ़कर एक कीमती राखियाँ बनाई जाती हैं। रक्षाबंधन के त्योहार में स्नेह और रक्षा करने की भावना का महत्त्व है, न कि कीमती राखियों का।
रक्षाबंधन पारिवारिक एवं सामाजिक एकता का सुंदर एवं पवित्र पर्व है। स्कूल-कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना चाहिए।
3.गणेशोत्सव
गणेशोत्सव भादों महीने में मनाया जाता है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की मूर्ति की स्थापना होती है। उस दिन से लेकर चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव की विशेष महिमा है। लोकमान्य टिळक ने इस उत्सव को सार्वजनिक रूप दिया।
गणेशोत्सव की तैयारियाँ कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन लोग बड़ी धूमधाम से गणेश की मूर्ति खरीद कर लाते हैं। ये सुंदर और रंगीन मूर्तियाँ सजी हुई गाड़ियों में या सिर पर रखकर श्रद्धापूर्वक लाई जाती हैं।
लोग अपने घरों के स्वच्छ, सुंदर, सजे हुए स्थान पर इन मूर्तियों की स्थापना करते हैं। 'गणपति बाप्पा मोरया' की ध्वनि से सारा वातावरण गूंज उठता है।
सार्वजनिक संस्थाएँ बड़े-बड़े भव्य मंडप बनाती हैं। इनमें बिजली के प्रकाश की सुंदर व्यवस्था की जाती है। सार्वजनिक गणेशोत्सव में गणेश जी की बड़ी और भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। मंच पर पौराणिक कथाओं के दृश्य भी खड़े किए जाते हैं। वर्तमान घटनाओं को भी सांकेतिक रूप से दर्शाया जाता है।
उत्सव के दिनों में संध्या के समय की रौनक देखते ही बनती है। घरों तथा सार्वजनिक मंडपों में श्रद्धा एवं भक्तिभाव से गणेश जी की आरती उतारी जाती है। आरती के बाद प्रसाद बाँटा जाता है।
घरों में स्थापित गणेश जी की मूर्तियाँ अधिकतर डेढ़ दिन बाद अथवा पाँचवें या सातवें दिन समुद्र अथवा सरोवर के जल में धूमधाम से विसर्जित कर दी जाती हैं। सार्वजनिक संस्थाओं की मूर्तियाँ चतुर्दशी के दिन भव्य जुलूस एवं गाजे-बाजे के साथ समुद्र अथवा सरोवर में विसर्जित की जाती हैं। उस समय का दृश्य बहुत भव्य होता है। मूर्तियों को ट्रकों एवं ठेला-गाड़ियों पर सजाकर विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इस अवसर पर संगीत एवं नाच-गाने के साथ भव्य जुलूस निकाला जाता है। लोग 'गणपति बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या' कहते हुए गणेश जी से अगले साल जल्दी दर्शन देने की प्रार्थना करते हैं। उस समय सभी का मन खुशी से नाच उठता है। गणेश-विसर्जन के साथ ही यह उत्सव समाप्त हो जाता है।
गणेशोत्सव एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्सव है। यह उत्सव लोगों को एकता के सूत्र से बाँधता है। गणेश जी विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि के देवता हैं। उनका उत्सव मनाकर हम अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाने की कामना करते हैं।